मैया की कहानी, मैया की जुबानी 8

बाबूजी

बाबूजी पक्के गांधीवादी थे। वो स्वतन्त्रता आन्दोलन में काफी सक्रिय रहे थे। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान हमारे घर कई आन्दोलनकारी आते थे। रात के समय उनके लिए खाना बनता था। फिर बंगला(दालान) के भुसघरे(भूसा रखने की जगह) में छुपाकर उन्हें सुला दिया जाता था। उस समय मैं केवल आठ साल की थी। अपने घर में आन्दोलनकारीओं को छुपते हुए देखना मेरे लिए एक रोमांचकारी अनुभव था।

महात्मा गांधी ने जब शराबबंदी का आह्वान किया था तो बाबूजी और कई अन्य लोगों ने मिलकर दरियापुर में शराब की एक दुकान को बंद करवाया था। दरियापुर मोकामा और शेरपुर के बीच में एक गांव है, हथिदह के करीब।

हमारे गांव के लोग बाबूजी की इन्हीं गतिविधियों से डरते थे। उन्हें लगता था कि ये बात अंग्रेजों को अगर मालूम हो गया तो इसकी सजा पूरे गांव को मिलेगी। इस बात की शिकायत कुछ लोगों ने बड़का बाबू (बाबूजी के बड़े भाई) से भी की थी।

बाबूजी का अक्षर ज्ञान धार्मिक ग्रंथों से हुआ। लेकिन देश और दुनिया की जानकारी के लिए वो अखबार नियमित रूप से पढ़ते थे। वो बताते थे कि अंग्रेजों के आने के पहले हमारे देश में राजे-रजवाड़ों, नवाबों, जमींदारों पर आधारित व्यवस्था थी। अंग्रेजों ने उसमें कुछ खास परिवर्तन नहीं किया। बल्कि उसी व्यवस्था का उपयोग उन्होंने अपने हक़ में किया। उनके अपने देश में लोकतंत्र की शुरुआत हो चुकी थी। लेकिन हमारे यहां वो जनता को लोकतांत्रिक अधिकारों से वंचित रखते थे।

स्वतंत्रता आंदोलन अपने आप में एक पूरा पाठ्यक्रम था, हमारे समाज और देश के लिए। बाबूजी और अन्य लोग जो उस आन्दोलन से प्रभावित थे, उनके समझने और सीखने के लिए उसमें आजादी के अलावा और कई विषय थे जैसे समानता, सामाजिक परिवर्तन, समरसता, आर्थिक विकास इत्यादि। उस पाठ्यक्रम के शिक्षक थे गांधी, नेहरू, पटेल, अम्बेडकर, मौलाना अबुल कलाम आजाद, सुभाषचन्द्र बोस, भगतसिंह जैसी महान विभूतियां। ऐसी बात नहीं है उन सभी विभूतियों के विचार एक ही थे। उनके मत अलग अलग भी थे। पर सभी का उद्देश्य एक था: हिन्दुस्तान को अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त कराना एवं देश में जनतंत्र की स्थापना करना।

मोकामा पुल
मोकामा पुल का उद्घाटन 1959 में नेहरू जी ने किया था। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने इस पुल का शिलान्यास किया था। और उस समय के विख्यात इंजीनियर, एम विश्वेश्वरैया, की देखरेख में इसका निर्माण हुआ था। विश्वेश्वरैया की उम्र तब नब्बे से अधिक थी। इस पुल का बनना हमारे क्षेत्र और प्रदेश के लिए एक ऐतिहासिक घटना थी।

स्वतन्त्रता प्राप्ति के शुरू के वर्षों में गंगा नदी पर बना ये दोमंजिला सेतु आधुनिक तकनीक का एक अनूठा उदाहरण था। ये उत्तर और दक्षिण बिहार को रेल और सड़क मार्ग दोनों से जोड़ता है। देश के उत्तर पूर्वी राज्यों से जोड़ने में भी सहायक सिद्ध हुआ। इसके बनने के पहले हमारे क्षेत्र में आवागमन का मुख्य केन्द्र था मोकामा घाट जहां से माल और यात्री को गंगा नदी के दूसरी ओर पानी के जहाज से पहुंचाया जाता था। मोकामा पुल के बनने के बाद मोकामा घाट बस एक इतिहास बन गया। उसका महत्व खत्म हो गया।

मेरे भाई, चन्द्रमौली, की शादी 1958 में हुई थी। तब पुल का निर्माण पूरा नहीं हुआ था। उसका ससुराल है रहीमपुर, गंगा के उस पार खगड़िया के पास। शादी के लिए शेरपुर से उसकी बारात मोकामा घाट होकर ही जहाज से गंगा के उस पार गई थी। बारात में लगभग एक सौ लोग होंगे।

उसकी शादी के बाद पहली बार होली का पर्व आया, 1959 के मार्च-अप्रैल के महीने में। तब चन्द्रमौली ससुराल गया था। हमारे यहां शादी के शुरू के वर्षों में होली के अवसर पर मेहमान को ससुराल में आमंत्रित करने की प्रथा है। हम दामाद और बहनोई दोनों को मेहमान शब्द से संबोधित करते हैं। मेहमान शब्द का ये खास प्रयोग हमारे इलाके में काफी प्रचलित है।

ससुराल जाने के समय चंद्रमौली मोकामा घाट होकर पानी के जहाज से गंगा पार किया था। ससुराल से एक महीने बाद वो लौटा रेल मार्ग से मोकामा पुल होकर। तब तक पुल का उद्घाटन हो चुका था। वो बताता है कि रात के समय हथिदह स्टेशन पर उतरा तो अचानक उसे समझ में नहीं आया कि वो कहां उतर गया है। क्योंकि एक महीने के अंदर वहां बहुत कुछ बदल चुका था।

15 मई को जिस दिन पुल का उद्घाटन हुआ बाबूजी काफी उत्साहित थे। पुल के निर्माण को लेकर और नेहरू के आने से। नेहरू उनके प्रिय नेता थे। मैया के साथ मुझे भी साथ ले गए थे समारोह को देखने के लिए। मेरा बड़ा लड़का, अरुण, उस समय मेरे गर्भ में सात महीने का था। आंठवा महीना शुरू हो गया था। आज भी जब उस घटना के बारे में सोचती हूं तो लगता है कि बाबूजी का वो कदम कितना साहसिक था। उस समय महिलाओं के ऊपर कितना प्रतिबंध था। उनके घर से निकलने से लेकर उनकी पढ़ाई, नौकरी हरेक चीज पर। इसके बावजूद वो हमें पैदल लेकर गये थे।

हमारे गांव से हथिदह करीब दो किलोमीटर है। रास्ते में एक मानव सैलाब था। हमारी तरह लोग पुल के उद्घाटन समारोह को देखने दस किलोमीटर, पन्द्रह किलोमीटर दूर गांवों से पैदल चलकर आ रहे थे। आजादी के बाद विकसित तकनीक के एक नायाब नमूने को देखने और अपने प्रिय प्रधानमंत्री नेहरू को सुनने।

पुल पर चढ़ने वाली गाड़ियों के लिए जो रेलवे लाइन बिछाई गई थी, वो जमीन से करीब तीस फीट ऊंची है। उसी ऊंचाई पर, पुल शुरू होने के ठीक पहले, हथिदह रेलवे स्टेशन है। स्टेशन से उत्तर-पूर्व की ओर नीचे खुला मैदान है। गंगा नदी के किनारे तक फैला हुआ। स्टेशन से नीचे आती हुई ढ़लान पर उद्घाटन मंच बनाया गया था, प्रधानमंत्री नेहरू, मुख्यमंत्री श्रीबाबू और अन्य गणमान्य अतिथियों के लिए। मंच लगभग दस फीट ऊंचा होगा। नेहरू जी और श्रीबाबू साथ साथ बैठे थे। नेहरू ने अपने भाषण में क्या कहा, मुझे याद नहीं है। पर इतना याद है कि श्रीबाबू जब बोलने के लिए उठने लगे तो उन्हें उठने में कठिनाई हो रही थी। नेहरू तुरत उनकी मदद के लिए उठ खड़े हुए। श्रीबाबू का शरीर थोड़ा भारी था। इस कहानी को सुनकर मेरा लड़का, अरुण, मजाक में कहता है कि फिर तो तुमने मुझे भी नेहरू जी के दर्शन करवा दिए।

उद्घाटन समारोह में शामिल होने के लिए मेरे पतिदेव भी आए थे अपने दोस्तों के साथ। उद्घाटन तिथि की घोषणा के बाद जब वो शेरपुर आए थे तभी हमने तय किया था कि हम दोनों समारोह स्थल पर मिलेंगे। वो आएंगे मोकामा से और हमलोग शेरपुर से। हथिदह मोकामा और शेरपुर दोनों के बीच में स्थित है। भीड़ में मैं तो उन्हें नहीं देख पाई। पर उन्होंने मुझे पहचान लिया मेरी लाल साड़ी को देखकर। वो मंच के पास थोड़ी ऊंचाई पर खड़े थे। समारोह के बाद हमसे मिलने आये थे। उद्घाटन समारोह का वो मंच आज भी इन सारी बातों के गवाह के रूप में वहां मौजूद है।

1967 में हमें मोकामा पुल पर बना एक बहुत ही मधुर गीत सुनने को मिला झारखंड के सुदूर जंगलों में। हमलोग तब मंझारी में थे। मंझारी झारखंड का एक ब्लाक है जो कि चाईबासा से काफी आगे है। उड़ीसा की सीमा से सटा हुआ। पतिदेव ब्लाक में ही कार्यरत थे। हमलोग ब्लाक के क्वार्टर में रहते थे। तब-तक हमारे परिवार में अरुण के अलावा सीमा और शीला भी शामिल हो गयी थी। जब आप अपने गांव, घर से काफी दूर रह रहे हों और वहां कोई ऐसा गीत सुनने को मिले जिसमें आपके गांव का जिक्र हो तो सुनकर अच्छा लगता है। ये हमारे घर का गृहगान बन गया:

जब से हिमालय बाटे
भारत देसवा में
ताहि बीच हहरे गंगा धार
हैरे मोकामा, पुलवा लागेला सुहावन

ऐलै पंचवर्षीय योजनमां
पुलवा के नीव जे परलै
बांधि देलकै गंगा धार
हैरे मोकामा, पुलवा लागेला सुहावन

उतरा के चावल धनमां
दक्खिना के कोयला पानी
ताहि बीच हहरै गंगा धार
हैरे मोकामा, पुलवा लागेला सुहावन

ऊपर ऊपर मोटर गाड़ी
तेकर नीचे रेलगाड़ी
तेकर नीचे छक-छक पनिया जहाज
हैरे मोकामा पुलवा लागेला सुहावन

https://www.youtube.com/watch?v=khvSKBi0vOU

©अरुण जी

फोटो: मोकामा पुल,
Source: Wikimedia comm

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