
श्रोत: विकिपीडिया
एक अफगान चींटी: रूसी कविता (1983)
कवि: Yevgeny Yevtushenko
रूसी से अंग्रेजी: Boris Dralyuk
अंग्रेजी से हिंदी: Arun Jee
सोवियत अफगान युद्ध के संदर्भ में लिखी गई कविता
एक अफगान चींटी
एक रूसी जवान अफगान जमीं पर मरा पड़ा था
एक मुस्लिम चींटी उसके खूंटीदार गाल पर चढ़ी—
इतनी मुश्किल चढ़ाई — काफी मेहनत के बाद वो
सैनिक के चेहरे तक पहुंची, उसे धीरे से कहा:
“तुम्हें पता नहीं तुम कहां मारे गए हो
तुम्हें तो बस इतना मालूम है, कि ईरान है पास
हथियार लेकर क्यों आए थे? क्या पाने की लालसा थी?
तुमने तो पहले इस्लाम शब्द सुना भी नहीं होगा
तुम हमारी गरीब, भूखी धरती को क्या दे सकते थे,
जब खुद अपने देश में खाने के लाइन में खड़े रहते हो?
उतने लोग जब वहां मरे थे तो क्या वो काफी नहीं था
बीस मिलियन में कुछ और जोड़ने की जरूरत क्या थी?”
अफगान धरती पर एक जवान मरा पड़ा था
एक मुस्लिम चींटी उसके सिर के ऊपर-नीचे चढ़-उतर रही थी
वो कुछ रूढ़िवादी चींटियों से पूछना चाहती थी
कि कैसे उसे पुनर्जीवित करे, उसकी क्षति पूर्ति करे
पर बहुत ही कम बचे थे समझदार और वफादार
सभी अनाथ, विधवा या निराश हो गए थे