बिहार चुनाव और हरिशंकर परसाई

श्रोत: मेटा एआई

बिहार में जब-जब चुनाव आता है हमें हरिशंकर परसाई ख़ूब याद आते हैं। ख़ासकर उनकी कहानी ‘हम बिहार में चुनाव लड़ रहे हैं’। बिहार चुनाव पर एक तीखा व्यंग। कहानी का एक अंश कुछ इस प्रकार है:

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चुनाव के समय गांव में एक भेड़िया प्रकट होता है। वह एक मेमने के पीछे चल पड़ता है। 

मेमने के पास पहुंचकर वह पूछता है, 

“तुमने मुझे पुकारा था?”

सहमा हुआ, डरा हुआ मेमना कहता है,

“मैंने तो मुंह ही नहीं खोला।”

भेड़िया कहता है, 

“तो मैंने तेरे हृदय की पुकार सुनी होगी।”

मेमने की तरह बिहार की जनता भी बार-बार यह कह रही है कि हमने तुम्हें नहीं पुकारा। हमें अपना उद्धार नहीं करवाना है। तुम क्यों हमारा भला करने पर उतारू हो?

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बरसों पहले हरिशंकर परसाई द्वारा लिखी यह कहानी आज भी कितना प्रासंगिक है इसे हम निम्नलिखित उदाहरण की मदद से समझने की कोशिश करते हैं: 

बिहार के एक निर्वाचन क्षेत्र में एक दुर्दांत अपराधी अभी-अभी जेल से निकला है। या यूं कहें कि उसे निकालकर भेजा गया है। एक समय अपराध की दुनियां में उसका नाम था। वह एक बड़े गैंग का सरगना हुआ करता था। कई लोगों की हत्याओं से उसका नाम जुड़ा है। पर धीरे-धीरे वह राजनीति की ओर मुड़ा। एक लम्बे समय तक या तो वह खुद या उसकी पत्नी इस क्षेत्र की एम एल ए रह चुकी है। उसने अपार संपत्ति अर्जित की। आज-कल वह जनता के बीच सफ़ेद परिधान में ढोल-नगाड़े के साथ घूम रहा है। वह अपने उम्र की ढलान पर है। पैदल चलने में उसे अपने अनुयाइयों के कन्धों की ज़रूरत पड़ती है। लेकिन पत्रकारों के कैमरे जब उसके चेहरे पर केंद्रित होते हैं, तो मूंछ पर ताव देने लगता है। पत्रकार उससे पूछते हैं आंय तो वह जवाब देता है बांय।

विरोधी पक्ष ने उसके खिलाफ़ जिस उम्मीदवार को मैदान में उतारा है वह भी अपने समय का एक खूंखार अपराधी रह चुका है। एक बड़े गैंग का सरदार। दर्जनों हत्याओं में शामिल। उसने भी राजनीति में कदम आगे बढ़ा कर अकूत संपत्ति हासिल की है। वह भी इस क्षेत्र का एम एल ए, एम पी वगैरह रह चुका है और उसकी पत्नी भी।

इन दोनों उम्मीदवारों के बारे में गोस्वामी तुलसीदास की उक्ति, ‘को बड़ छोट कहत अपराधी’, बिल्कुल ठीक बैठती है। दोनों उम्मीदवारों के कार्यकाल में रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे मूल मुद्दे पर क्षेत्र में कोई प्रगति नहीं हुई है। इन मुद्दों पर ये बात भी नहीं करते हैं। हां, विकास के नाम पर मंदिर जरूर बने हैं। हाल में सरकार ने इस क्षेत्र में एक मंदिर बनवाने का जो आदेश दिया है वह निश्चित रूप से पहले उम्मीदवार के खाते में जाना चाहिए। क्योंकि निवर्तमान एम एल ए उसकी पत्नी है। उसी तरह दूसरे उम्मीदवार ने भी अपने गांव में ख़ूब जतन से एक मंदिर बनवाया है जिसमें समय-समय पर धार्मिक अनुष्ठान एवं भोज-भात होते रहते हैं। 

दोनों उम्मीदवारों के कार्यकाल में रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे मूल मुद्दे पर क्षेत्र में कोई प्रगति नहीं हुई है। इन मुद्दों पर ये बात भी नहीं करते हैं। हां, विकास के नाम पर मंदिर जरूर बने हैं। हाल में सरकार ने इस क्षेत्र में एक मंदिर बनवाने का जो आदेश दिया है वह निश्चित रूप से पहले उम्मीदवार के खाते में जाना चाहिए। क्योंकि निवर्तमान एम एल ए उसकी पत्नी है। उसी तरह दूसरे उम्मीदवार ने भी अपने गांव में ख़ूब जतन से एक मंदिर बनवाया है जिसमें समय-समय पर धार्मिक अनुष्ठान एवं भोज-भात होते रहते हैं। 

क्षेत्र की जनता पर बरसों से नायकत्व का एक नशा-सा सवार है। उसे लगता है कि उसका प्रतिनिधि एक ऐसा नायक हो जिसके केवल होने से ही उसकी सारी समस्याएं दूर हो जाए। वह भक्ति में लीन है। रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे मुद्दों को उसने भगवान के भरोसे छोड़ दिया है।

Published by Arun Jee

Arun Jee is a literary translator from Patna, India. He translates poems and short stories from English to Hindi and also from Hindi to English. His translation of a poetry collection entitled Deaf Republic by a leading contemporary Ukrainian-American poet, Ilya Kaminski, was published by Pustaknaama in August 2023. Its title in Hindi is Bahara Gantantra. His other book is on English Grammar titled Basic English Grammar, published in April 2023. It is is an outcome of his experience of teaching English over more than 35 years. Arun Jee has an experience of editing and creating articles on English Wikipedia since 2009. He did his MA in English and PhD in American literature from Patna University. He did an analysis of the novels of a post war American novelist named Mary McCarthy for his PhD

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