ऑरविल, एक आदर्श लोक: कितना सफल, कितना असफल?

Mathew T Rader, Wikimedia Foundation

पांडिचेरी से 12 किलोमीटर दूर बंगाल की खाड़ी के किनारे एक पठार पर अवस्थित ऑरविल एक ऐसा शहर है जिसकी शुरुआत महर्षि अरविंद की मृत्यु के बाद उनकी सहकर्मी एवं उत्तराधिकारी, मदर, ने 1968 में किया था। मदर ने ऑरविल के चार्टर में लिखा था कि औरेविल एक ऐसा आदर्श परिवेश होगा जहां दुनिया के किसी कोने से आकर लोग शांतिपूर्वक, प्रेम और भाईचारे के साथ रह सकेंगे। उसका उद्देश्य होगा मनुष्य को मनुष्य से जोड़ना।

मदर के आह्वान पर अमेरिका, यूरोप, एशिया के विभिन्न देशों से वहां के भौतिकवादी चमक-दमक से उबकर लोग ऑरविल आने लगे, एक आदर्श जीवन बिताने। लेकिन महर्षि अरविंद के विचारों पर आधारित इस आदर्श लोक की स्थापना का ये प्रयोग कितना सफल रहा, कितना असफल?

इन्हीं बातों की जांच पड़ताल की है आकाश कपूर ने अपनी किताब बेटर टु हैव गोन में, जो कि एक शोधपरक डॉक्यूमेंट है। एक सच्ची कहानी। इस पुस्तक को लेखक ने सालों साल लेख, पत्र और कई डाक्यूमेंट्स के अध्ययन के बाद और सैकड़ों लोगों का इंटरव्यू लेकर लिखा है। यह ऑरविल के संघर्ष और उसके विकास की कहानी है। उसका इतिहास। इसके साथ ही यह एक आदर्श विचार के जीवन एवं समाज की कड़वी सच्चाई से टकराव की कहानी भी है।

ऑरविल की इस कहानी के केंद्र में हैं दो रहस्यमय मौत: एक अमरीकी पुरुष और दूसरी बेल्जियम की एक महिला का। दोनों अपने-अपने देश के भौतिकवादी जीवन से विमुख होकर ऑरविल आए थे और यहीं रहने लगे साथ-साथ, पार्टनर के रूप में। 

बेटर टु हैव गोन लेखक आकाश कपूर के जीवन की अपनी कहानी भी है। वह और उनकी पत्नी ऑरालिस दोनों ने अपना बचपन ऑरविल में बिताया था, 12 साल की उम्र तक। उसके बाद दोनों अपने-अपने रास्ते अमरीका चले गए। अमरीका में ही पढ़ाई के दौरान दोनों की मुलाकात हुई और वही उन्होंने शादी कर ली। कुछ वर्षों बाद उन दोनों का परिवार ऑरविल में रहने के लिए फिर से लौटा। उनके लौटने का एक उद्देश्य था उन दो व्यक्तियों की मौत के रहस्य से पर्दा उठाना। और उसका एक खास कारण ये था कि मृत महिला आकाश कपूर की सास थी। उनकी पत्नी, ऑरालिस, की मां।

आकाश कपूर एक पेशेवर लेखक हैं और इस पुस्तक को उन्होंने निष्पक्ष होकर लिखा है। अपनी भावनाओं को अलग रखकर। कहानी काफी रोचक है। 

एक पाठक के रूप में मैं केवल ये कह सकता हूं कि पुस्तक की कुछ बातों को थोड़ा संक्षेप में भी लिखा जा सकता था। पर ये भी सच है कि यह एक सच्ची कहानी है, काल्पनिक कथा नहीं। इसमें लेखक का उद्देश्य है सच्चाई के हरेक पहलू को उजागर करने की कोशिश करना।

©अरुण जी, 22.09.21

Sources: Better to have gone, Wikipedia

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