
फ़्रेसेस्का ऑर्सीनी। कल तक इस नाम से मैं परिचित नहीं था। दो दिन पहले इनके बारे में मैंने ख़बर पढ़ा कि सरकार ने भारत में उनके प्रवेश पर पाबंदी लगा दी है। उन्हें उल्टे पांव या कहिए कि उल्टी उड़ान से लंदन विदा कर दिया गया। मुझे लगा कि अगर इस ख़बर में सचमुच कोई दम है तो इससे जुड़े विवरण अपने आप चलकर मेरे पास आ जाएंगे।
और कल सचमुच ऐसा ही हुआ। फेसबुक ने Pervaiz Alam का पोस्ट मेरे लिए परोस दिया। कमेंट बॉक्स में उन्होंने एक दो लिंक भी साझा किया है। पोस्ट को पढ़कर मैंने जब Cineink का यूट्यूब लिंक खोला तो फिर मैं सुनता ही रह गया।
अचला शर्मा से बातचीत में फ़्रेसेस्का ऑर्सीनी के व्यक्तित्व और कृतित्व का पता चलता है। हिंदी, उर्दू, अवधि जैसी अन्य कई दक्षिण एशियाई भाषाओं और उनके साहित्य का फ़्रेसेस्का ने गहन अध्ययन किया है। वह एक विदुषी हैं। भारत में रहकर उन्होंने पढ़ाई की है, शोध किया है। बहुभाषीय संस्कृति की समर्थक हैं। अपने आप को इलाहाबादी मानती हैं।
वह कहती हैं कि बचपन में अगर किसी ने पहले मगही सीखा, उसके बाद हिंदी और उसके बाद अंग्रेजी तो ये अच्छी बात है। जरूरत के हिसाब उसे तीनों का प्रयोग करना चाहिए। केवल एक ही के प्रयोग पर बल देना उचित नहीं है। (वैसे उनकी ये टिप्पणी मुझपर सटीक बैठती है)।
इसी तरह ट्रेन की हम प्रतीक्षा करें या उसका इंतज़ार, क्या फ़र्क पड़ता है। जिसे जो इच्छा हो वह उसका प्रयोग करे। दोनों के बीच एक विकल्प की बात पर ज़ोर देने से हमारी भाषा समृद्ध नहीं होगी। ऐसी बातें हमारी भाषा को कमज़ोर करती हैं। इस संदर्भ में उन्होंने अंग्रेजी के शब्दकोशों का उदाहरण दिया जिनमें हरेक कुछ वर्षों में दूसरी भाषाओं के शब्दों को शामिल किया जाता है।
एक समय था जब ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी अपने शब्दकोश को हरेक दस साल में अपडेट करती थी। वैसे आज भी वह कर रही है। देश और दुनियां में आज जितनी तेजी से बदलाव हो रहे हैं उसके हिसाब से हरेक साल नये शब्द शामिल किए जा रहे हैं। कॉलेज के दिनों में मुझे याद है कि एक बार ऑक्सफोर्ड ने ‘पराठा’ और ‘रायता’ जैसे शब्दों को शामिल किया था। और मैं ख़ुश था। चलो बच्चू अब हमारे शब्दों को तुम्हें लेना पड़ रहा है। पर अंग्रेजी तो समृद्ध हो रही थी। मतलब ये हुआ कि हिंदी में बोल-चाल वाले शब्दों को घटाने से हम अमीर नहीं, गरीब होते चले जाएंगे। चाहे वे किसी भी अन्य भाषा के शब्द क्यों न हों।