शीला राय शर्मा की खिड़की

फोटो क्रेडिट: अरुण

इन दिनों मेरी किताब है शीला राय शर्मा की ‘खिड़की’। एक कहानी संग्रह। हाल में आई है प्रभात प्रकाशन से। इसमें एक से बढ़कर एक कहानियों के सुंदर नमूने हैं। और मौजूद हैं इसमें जीवन और समाज के तेजी से बदलते परिवेश की झलकियां। कहानियों को पढ़ते हुए लगता है कि परिवार, देश और दुनिया पर शीला जी की पैनी नजर है और कहानियों को गढ़ने की अद्भुत कला।

पहली कहानी ‘खिड़की’, जो इस संग्रह का शीर्षक भी है, को पढ़ते ही मैं उनका मुरीद हो गया। कहानी शुरु होती है इसकी मुख्य किरदार, नीतू, के अमरीका से भारत लौटने से। सत्रह साल बाद वह अपनी मां से मिलने आ रही है।

विमान की लम्बी यात्रा में उसे घर, परिवार की बहुत सारी बातें याद आ रही हैं। कि कैसे जब उसने अपनी मर्जी से शादी करने का फैसला किया था तो उसके पिता ने उससे अपना सारा रिश्ता तोड़ लिया था। शादी के बाद वह अपने पति के साथ अमरीका चली गई। इतने सालों बाद जब वह घर लौटकर आ रही है तो घर में उसकी मां अब अकेली बचीं हैं। पिता साल भर पहले चल बसे। भैया अपने परिवार के साथ बैंगलोर में रहता है। अचानक मिलने पर मां और बेटी दोनों भावविभोर हो जाते हैं। दोनों फूट-फूटकर रोने लगते हैं। पर इतने भावनात्मक जुड़ाव के बावजूद भी आखिर कौन सी ऐसी बात है जिसके कारण बेटी ने अमरीका जल्दी लौटने का फैसला कर लिया।

शीला जी ने इस कहानी को काफी बारीकी से बुना है। इसमें रिश्तों की गहराई और जीवन की सच्चाई, दोनों के टकराव को उन्होंने बखूबी पेश किया है। कहानी की अंतिम पंक्तियां, जब नीतू रिक्शे पर सवार, घर छोड़कर जा रही है, काफी मार्मिक हैं:

“इस घर के दरवाजे तो कब से मेरे लिए बंद हो चुके थे, अब वह खिड़की भी बंद हो गई, जिससे होकर मै जब नहीं तब चुपके से आ जाया करती थी।”

फोटो क्रेडिट: अरुण

दूसरी कहानी है ‘एक बार फिर’। कहानी की शुरुआत होती है हल्के फुल्के अंदाज में, जब मां का आगमन होता है शहर में, अपनी बेटी के घर। बच्चे खुश कि नानी के आने से घर के अनुशासन में थोड़ी ढ़ील मिलेगी। बेटी के लिए ये मौका है मां से गप्प करने का। उनसे रिश्तेदारों, पड़ोसियों के बारे में दिलचस्प किस्से सुनने का। छोटी छोटी बातों पर हंसने का। घर का काम खत्म करके चाय पर रोज बेटी अपनी मां से बातें करती।

एक दिन मां जब बातचीत की अपनी पोटली खोल रही हैं, तब अचानक इस कहानी में एक रोचक मोड़ आता है। धीरे धीरे रिश्तों के परत खुलने लगते हैं। इस कहानी का अंत काफी भावपूर्ण है, जब मां खुद बेटी बन जाती है। इस कहानी की एक और खासियत है कि यह विलुप्त हो रहे पारंपरिक एवं विस्तृत परिवार की कुछ ऐसी झलकियां पेश करता है जो नई पीढ़ी को, खासकर नगरीय परिवेश में पले पाठकों को, शायद काल्पनिक लगे।

किसी भी कहानी के महत्वपूर्ण तत्व होते हैं कथानक, किरदार, थीम, तकनीक, भाषा इत्यादि। अब किस कहानी में कौन सा तत्व कितना महत्वपूर्ण होगा, यह कहानीकार के ऊपर निर्भर करता है। कुछ कहानीकार कथानक को ज्यादा महत्व देते हैं तो कुछ किरदार, थीम या तकनीक को। शीला राय शर्मा के इस संग्रह की अगर बात करें तो पहली दो कहानियों में उन्होंने कथानक एवं किरदार दोनों को लगभग बराबर तरजीह दी है। पर दोनों को अगर सूक्ष्मता से देखें तो ज़ाहिर है कथानक बाजी मार लेता है।

पहली कहानी, खिड़की’, में नीतू का अपनी मां से मिलना, उनके साथ रहना, उन दोनों का प्रेम वगैरह सब कुछ ठीक चल रहा है। पर अचानक एक ऐसी बात सामने आती है कि सबकुछ बदल जाता है। और यहीं हमें समझ में आता है कि इस कहानी को किरदार नहीं, बल्कि कथानक नियंत्रित कर रहा है।

ऐसा ही कुछ होता है दूसरी कहानी, ‘एक बार फिर’, में। मां अपनी बेटी को अपने गांव घर की कहानियां सुना रहीं हैं कि अचानक एक दिलचस्प मोड़ आता है जो इस कहानी को काफी भावपूर्ण बना देता है।

पर इसके ठीक विपरीत शीला जी की तीसरी कहानी, ‘चिल्लर बहू’ में कथानक की अपेक्षा किरदार का पक्ष ज्यादा महत्वपूर्ण है। इस कहानी में वह हरेक किरदार को सुकून से गढ़तीं हैं। पहले आतीं हैं ताई जी, फिर ताऊ जी। चिल्लर बहू सक्रिय होती है कुछ पृष्ठों के बाद। एक जमींदार के घर अपने काम से उसकी पहचान है। उसका कोई अपना नाम नहीं है। अपने पति, चिल्लर, के नाम से ही जानी जाती है, जो निहायत सीधा एवं ‘अकर्मण्य’ है। पूरी तरह से अपनी पत्नी पर निर्भर।

कहानी के अंत में चिल्लर बहू के व्यक्तित्व का नया पक्ष उभरकर आता है जब वह ताई जी से अपने पति के बाद मरने का आशीर्वाद मांगती है। वैसे तो पति के बाद मरने की उसकी यह कामना स्थापित सामाजिक मान्यताओं के ठीक विपरीत है। पर जब वह कहती है, “बहू जी, सोचकर देखो, मैं न रहूं तो इन्हें खाना कौन देगा? भूखों मर जाएंगे? …..” तब समझ में आता है कि चिल्लर के प्रति उसका प्रेम कितना गहरा है।

फोटो क्रेडिट: अरुण

इन कहानियों को पढ़ते हुए ऐसा लग रहा है कि विषय का ज्ञान, जीवन का अनुभव, शिल्प की जानकारी वगैरह होना एक बात है पर इन सबको कथा की विधा में पिरोना बिल्कुल अलग। शीला जी इस फ़न में माहिर दिखती हैं। ऊपर मैंने केवल तीन कहानियों का जिक्र किया है। खिड़की में कहानियों की सूची लम्बी है और मेरे पढ़ने की यात्रा जारी। उत्सुकता बनी हुई है।

Published by Arun Jee

Arun Jee is a literary translator from Patna, India. He translates poems and short stories from English to Hindi and also from Hindi to English. His translation of a poetry collection entitled Deaf Republic by a leading contemporary Ukrainian-American poet, Ilya Kaminski, was published by Pustaknaama in August 2023. Its title in Hindi is Bahara Gantantra. His other book is on English Grammar titled Basic English Grammar, published in April 2023. It is is an outcome of his experience of teaching English over more than 35 years. Arun Jee has an experience of editing and creating articles on English Wikipedia since 2009. He did his MA in English and PhD in American literature from Patna University. He did an analysis of the novels of a post war American novelist named Mary McCarthy for his PhD

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