रेणु की कितने चौराहे: एक समीक्षा

फोटो क्रेडिट: अरुण जी

फणीश्वर नाथ रेणु की कितने चौराहे एक प्रेरणादाई उपन्यास है। एक बालक के बड़े होने की कहानी, जिसमें परिवार, समाज और देश बराबर के भागीदार हैं। इस उपन्यास के लिए रेणु ने हमारे देश के एक महत्वपूर्ण काल खंड को चुना है। 1930-1942 का समय जब अंग्रेजों के खिलाफ आज़ादी की लड़ाई में महात्मा गांधी की भूमिका काफी अहम हो गई थी।

मनमोहन एक किसान का होनहार लड़का है जो गांव के स्कूल से अररिया शहर पढ़ने जाता है। एक अबोध बालक के लिए नया स्कूल, नये लोग और नयी संस्कृति से तालमेल बिठाने में शुरुआत में कुछ दिक्कत होती है। पर जल्द ही वह अपनी सूझबूझ और प्रतिभा के बल पर शिक्षकों एवं दोस्तों के बीच अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो जाता है। पढ़ाई में वह हमेशा अव्वल स्थान पाता है। पर उसकी पढ़ाई केवल किताबों तक ही सीमित नहीं है। वह उन सारी गतिविधियों में सक्रिय होने लगता है जो उस वक्त समाज और देश को बेहतर बनाने की दिशा में चल रहे थे। चाहे वो जरूरतमंदों की मदद हो, भूकम्प पीड़ितों की सेवा या अंग्रेजी हुक़ूमत का विरोध। इन सबकी प्रेरणा के श्रोत हैं महात्मा गांधी। हालांकि वे उपन्यास में बस एक बार ही प्रकट हुए हैं। एक बहुत छोटे अन्तराल के लिए।

मनमोहन जो गांव में मुनि जी और और शहर में मोना के नाम से जाना जाता है, इस उपन्यास का मुख्य पात्र है। पर उसके अलावा उपन्यास के और भी कई पात्र हैं जिनकी भूमिकाएं महत्वपूर्ण है। जैसे प्रियोदा, काका, बाबू जी, शरबतिया, नीलू इत्यादि।

भारत की आज़ादी की पृष्ठभूमि में लिखे गए इस उपन्यास में एक आदर्श समाज के निर्माण का सपना है। और उस सपने को साकार करने की चाहत। रेणु उस वक्त यह भलीभांति जानते थे कि हमारा समाज जाति, धर्म, और आर्थिक विषमताओं जैसे मुद्दों से जूझ रहा है। उन्हें यह भी मालूम था सामाजिक समरसता को बरकरार रखते हुए अंग्रजों के खिलाफ लड़ना कितना कठिन है। उपन्यास के उत्तरार्ध में हिन्दू मुसलमान के बीच हुए दंगों और उनमें हफ़ीज साहब और सूर्यनारायण के बलिदान का वर्णन हमें 1940 के आसपास के दंगों की याद दिलाता है। इसी अध्याय में गणेश शंकर विद्यार्थी का भी जिक्र है, जो 1931 में कानपुर के दंगों की बलि चढ़ गए थे। समाज के इन अंतर्विरोधों से रेणु पूर्णतया अवगत थे। तभी उन्हें गांधी के विचार उपयुक्त लगते थे।

रेणु ने इस उपन्यास में बच्चों की शिक्षा का एक नमूना भी प्रस्तुत किया है जिसमें उन्होंने किताबों के अलावा समाज, देश और संस्कृति से जुड़ी गतिविधियों को शामिल करने पर बल दिया है। उपन्यास में हम देखते हैं कि कैसे मुख्य पात्र मनमोहन विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक क्रियाकलापों में नियमित रूप से भाग लेता है और कैसे उसके विचार परिपक्व हो रहे हैं।

उपन्यास का शीर्षक, कितने चौराहे, अपने आप में काफ़ी महत्वपूर्ण है। मुख्य पात्र मनमोहन के जीवन में कई चौराहे आए और प्रायः उसने अपने लिए सही मार्ग ही चुना। चाहे वह पढ़ाई का हो या सच्चाई का, प्रेम का हो या सेवा का। रेणु ने इस उपन्यास में हमें एक कसौटी भी दी है। उनकी दृष्टि में समाज में प्रेम, भाईचारा के बिना हमारे विकास की यात्रा अधूरी है।

रेणु की इस कृति के बारे में और भी बहुत कुछ लिखने की इच्छा हो रही है। जैसे कि उनकी भाषा, उनके प्रयोग, ध्वनियों या संगीत के प्रति उनकी सजगता के बारे में। पर मुझे मालूम है कि रेणु साहित्य पर पहले से ही बहुत कुछ मौजूद है। केवल एक और बात। मेरे हिसाब से उपन्यास का अंत थोड़ा और बेहतर हो सकता था।

रेणु साहित्य मेरे विश लिस्ट में वैसे भी सबसे ऊपर रहा है पर भाई शाहनवाज़ को विशेष धन्यवाद जिन्होंने मेरी इस इच्छा को पूरा करने में मेरी मदद की।

Published by Arun Jee

Arun Jee is a literary translator from Patna, India. He translates poems and short stories from English to Hindi and also from Hindi to English. His translation of a poetry collection entitled Deaf Republic by a leading contemporary Ukrainian-American poet, Ilya Kaminski, was published by Pustaknaama in August 2023. Its title in Hindi is Bahara Gantantra. His other book is on English Grammar titled Basic English Grammar, published in April 2023. It is is an outcome of his experience of teaching English over more than 35 years. Arun Jee has an experience of editing and creating articles on English Wikipedia since 2009. He did his MA in English and PhD in American literature from Patna University. He did an analysis of the novels of a post war American novelist named Mary McCarthy for his PhD

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