मेरे मन में पेरिस से जुड़ी कहानियों की होड़ मची है। एक कहानी कह रही है मुझे निकालो, तो दूसरी कह रही मुझको कहो। कल देर रात हम फ्रांस में समुद्र पर बसे एक शहर की यात्रा से लौटे। वहां के मनोरम दृश्य और उनसे जुड़ी घटनाएं मन पर हावी थीं। पर अचानक आज सुबह उस लड़के की याद आ गई जो पिछले सप्ताह पेरिस की यात्रा के दौरान हवाई जहाज में मिला था।
मस्कट से पेरिस आने वाले जहाज में जब हम सवार हुए तो मेरे ठीक बगल वाले सीट पर एक युवक आकर बैठ गया। उसकी उम्र होगी पच्चीस से तीस वर्ष के बीच। कद-काठी मेरे ही इतनी। बैठते ही मुझे देखकर मुस्कुराया।
मुझे काफी तसल्ली मिली। क्यों कि इस यात्रा में अभी तक जितने भी यात्री मिले थे उनसे मेरा कोई आदान-प्रदान नहीं हुआ था। सभी अपने ही धुन में मस्त। ज्यादातर लोग अपने मोबाइल पर झुके हुए। ये कुछ अलग लग रहा था।
दिल्ली से पेरिस की विमान यात्रा में ये हमें दूसरे जहाज में मिला था। पहले जहाज से हम मस्कट उतरे थे। फिर दूसरे जहाज से पेरिस के लिए रवाना हुए। दूसरा पहले की अपेक्षा काफी बड़ा था। उसकी हरेक पंक्ति में नौ सीटें थीं। और प्रत्येक तीन सीट के बाद आने जाने का एक रास्ता। मतलब उसमें आने-जाने के दो रास्ते थे। जहाज में बने इस तरह के रास्ते को अंग्रेजी में आइल कहते हैं। हमारी तीन सीटों वाली पंक्ति दो रास्तों के बीच अवस्थित था। और मेरी सीट उन तीनों के भी बीच में। मेरी बायीं ओर बन्दना थीं और दायीं ओर वह युवक।
ज्यादा बोलना, सामने वाले से सवाल करना या फिर बिना पूछे कोई जानकारी दे देना। ये सब मेरी आदतों का हिस्सा रहा है। शायद अपने पेशे का प्रभाव है। पर आजकल कोशिश कर रहा हूं कि इन आदतों को बदलूं। कम बोलूं, ज्यादा दूसरे लोगों की बातों को सुनूं। पेरिस की यात्रा की तैयारी के लिए मैंने इसका खास ध्यान रखा था। परन्तु उस युवक की मुस्कुराहट ने मुझे उत्साहित कर दिया था। बात करने के लिए। उसके बारे में जानने के लिए।
जहाज के उड़ान भरते ही मैंने उससे पूछा कि आप पेरिस जा रहे हैं? हालांकि इस सवाल का कोई मतलब नहीं था। क्योंकि जहाज का पड़ाव पेरिस ही था। इसके सभी यात्री पेरिस ही जा रहे थे। पर इसके अलावा मुझे और कोई सवाल उस वक्त नहीं सूझा। वैसे भी पहली बातचीत में नाम वगैरह पूछना मुझे अटपटा लग रहा था। उसने कहा हां। आगे बातचीत में उसने बताया कि वो पेरिस पहली बार जा रहा है। हमारी बातचीत अंग्रेजी में हो रही थी। और उसके अंग्रेजी बोलने के लहजे से मैंने अनुमान लगाया कि वह भारत के किसी दक्षिणी प्रदेश से हैं।
कुछ ही देर में जहाज कर्मी खाना लेकर आ गए। मुझे भूख लग चुकी थी। पर पहले राउंड में उन्होंने केवल कुछ लोगों को भोजन परोसा। उसमें बन्दना एक थीं। उन्हें मिला शाकाहारी पास्ता। गरम-गरम पास्ता की थाली को देखकर भूख और बढ़ गई। मैंने अपना नाम मांसाहारियों में लिखवाया था। इसलिए लगा कि मुझे बाकी यात्रियों के साथ दूसरे राउंड में मिलेगा।
पर दूसरे राउंड में जिन लोगों की बारी आई उसमें वह युवक था, मैं नहीं। उसे मिला चावल-दाल। मेरी बायीं ओर था पास्ता और दायीं ओर चावल-दाल। मेरे सब्र का बांध टूटने लगा था। खाना परोसने वाली महिला से पूछने पर मालूम हुआ कि सबसे पहले स्पेशल भोजन परोसा जाता है। फिर सामान्य। मेरे लिए यह बिल्कुल असामान्य बात थी। अबतक मैं जानता था शाकाहारी भोजन एक सामान्य चीज है और मांसाहारी विशेष। पर एक अलग परिवेश में कैसे चीजें बदल सकती है, मुझे समझ आने लगा था। अपनी दायीं ओर चावल-दाल को देखकर थोड़ा कौतूहल भी होने लगा।
मैंने उससे कहा कि वाह एक मैं ही मांसाहारी निकला। आप दोनों तो शुद्ध शाकाहारी हैं। फिर मैंने जानना चाहा कि शाकाहारी में भी उसे चावल-दाल कैसे मिला जबकि बन्दना को पास्ता। उसने कहा कि टिकट कटाते वक्त ओमान के वेबसाइट पर उसने अपनी पसंद में केवल शाकाहारी ही नहीं, बल्कि विशेष रूप से ‘हिन्दू शाकाहारी भोजन’ को चुना था। तब मुझे समझ आया कि बन्दना, एक शुद्ध शाकाहारी, को पाश्चात्य शाकाहारी थाली क्यों मिली।
फिर उसने बताया कि वह मुस्लिम है और आॉफिस में उसके कई दोस्त हिन्दू हैं। प्रायः जब वह चिकन या मटन का कोई व्यंजन लेकर ऑफिस जाता है तो उसके हिन्दू दोस्त चावल-दाल लेकर आते हैं। वे एक दूसरे का भोजन शेयर करते थे। मांसाहारी भोजन खाकर वह थोड़ा बोर हो गया था। इसलिए जब विमान में उसे खाने को चुनना था तो उसने ‘हिन्दू शाकाहारी भोजन’ चुना। अच्छा, तो ये दोस्ती का असर है। सोचकर मुझे अच्छा लगा। तब-तक मेरी थाली भी आ गई। चिकन बिरयानी। और मैं उस पर टूट पड़ा।
बाद में उसने बताया कि वह एक कंपनी में मेकेनिकल इंजीनियर है। और उसके अनुसंधान विभाग में कार्यरत है। उसे नयी नयी मशीनों के बारे में जानने, उन पर काम करने में अच्छा लगता है। ग्राहकों की सुविधा के लिए नये मशीन इज़ाद करने, उसमें बदलाव लाने में मज़ा आता है।
मुझे लग रहा था कि पेरिस वह अपने कंपनी के काम से जा रहा है। पर उसने बताया कि पेरिस में उसकी शादी होने वाली है। लड़की और उसके परिवार के लोग पेरिस में ही रहते हैं। दो दिन बाद वहीं उनका निक़ाह होगा। टुकड़ों में हुई हमारी बातचीत अचानक बीच में रुक गई जब विमान में पेरिस के नजदीक आने की घोषणा हुई। फिर हमलोग अपने सामान को समेटने में लग गए। कुछ ही मिनटों में विमान नीचे उतरा। फिर हम अलग हो गए।
पेरिस पहुंचने के बाद उस युवक को मैं लगभग भूल सा गया था। अगले दिन से ही हमारे घूमने का कार्यक्रम शुरू हो गया और अभी भी चल ही रहा है। लेकिन दो दिन बाद गूगल न्यूज़ पर मैंने पढ़ा कि आइफ़िल टावर के ऊपर एक युगल जोड़ी ने विवाह रचाया। तब मुझे लगने लगा कि ये निश्चित रूप से उसी युवक के विवाह की ख़बर है। वैसे भी गूगल हमारे लोकेशन, हमारी बातचीत की पूरी ख़बर रखता है। और उसने इस ख़बर को मुझे इसलिए परोसा है क्योंकि उसे मालूम है कि मुझे इसमें दिलचस्पी होगी।
जिस दिन की ये ख़बर थी उसी के अगले दिन हमारा भी आइफ़िल टावर के ऊपर जाने का कार्यक्रम था। पढ़कर मुझे लगने लगा कि काश मैं भी उस वक्त आइफ़िल टावर पर मौजूद होता। मुझे पूरा विश्वास था कि वहां उपस्थित रहने पर उसकी शादी के वलीमे में श़रीक होने का न्योता जरूर मिलता। केवल एक दिन के अंतर से मैं छूट गया।