बोकारो बसे मेरे मन में

Credit: DPS Bokaro

22 दिसंबर, रविवार का दिन। सुबह सुबह मेरी नींद खुली चिड़ियों के कलरव से। उठा तो अहसास हुआ कि पटना के चिल्ल-पों से दूर मैं अपने पुराने शहर बोकारो में हूं। महेश मामू-शर्मिष्ठा मामी के घर।

पिछले शाम ही वहां पहुंचा था। डीपीएस बोकारो के पहले बैच के स्टुडेंट्स के पुनर्मिलन समारोह में शामिल होने। 1991 में उस बैच ने डीपीएस से बारहवीं कक्षा की पढ़ाई पूरी की थी। दो वर्षों तक (1989-1991) मैं उनका अंग्रेजी अध्यापक था।

झटपट उठकर मैं बाहर आया और सुनने लगा पक्षियों का आर्केस्ट्रा। घर के अहाते में आम के पेड़ पर कोयल का गायन। सामने पार्क की एक पेड़ की फुनगी पर बैठी चिड़ियों की तान। वाह, क्या जुगलबंदी थी! कुछ देर तक सुनता रहा। सोचता रहा कि क्या यह पटना जैसे शहर में संभव है? क्या पेड़, पक्षी और मनुष्य वहां आनंदपूर्वक एक साथ जीवन बिता सकते हैं?

अपने जीवन के तीसरे दशक के लगभग नौ साल मैंने बोकारो में गुजारे थे। डीपीएस में नौकरी के सिलसिले में। पिछली शाम से ही मैं बोकारो की उन धुंधली पड़ती स्मृतियों को झाड़ने, पोछने में लगा था। शहर का भूगोल, जगहों के नाम, लोगों के चेहरे, उनसे जुड़े किस्से। धीरे-धीरे सब याद आ रहे थे।

सुबह नौ बजे मुझे डीपीएस पहुंचना था। समारोह में शामिल होने। तैयार होकर मैं निकल पड़ा। रास्ते में कार से उचक उचक कर देख रहा था कि सेक्टर वन की कौन सी सड़क स्कूल जाने के लिए कहां मुड़ती है। सेक्टर फोर पहुंचने पर केन्द्रीय विद्यालय, डीएवी होते हुए बायीं ओर मुड़कर हम स्कूल पहुंचे। रोटरी स्कूल कब निकल गया, पता ही नहीं चला।

Credit: DPS Bokaro

स्कूल में प्रिंसिपल गंगवार गर्मजोशी से अपने चेम्बर में मिले। उस चेम्बर से मेरी बहुत सारी यादें जुड़ी हैं। डॉ एम एस त्यागी के जमाने की। एक बार डॉ त्यागी से छुट्टी की स्वीकृति के बिना मैं दो दिनों के लिए पटना चला गया था। मेरे पीएचडी का साक्षात्कार था। ये 1993 की बात है। अगले दिन सुबह सुबह जब स्कूल पहुंचा, तो अभिमन्यु ने आकर मुझसे कहा: प्रिंसिपल सर आपको बुला रहे हैं। मेरे तो चेम्बर पहुंचने के पहले पसीने छूटने लगे। अन्दर प्रवेश करते ही डॉ त्यागी ने अपनी कड़क आवाज़ में मुझसे सवाल किया: आपने ऐसा क्यों किया? मेरे पास सॉरी कहने के अलावा और कोई जवाब नहीं था। खैर, मुझसे सॉरी सुनकर तुरत उनका गुस्सा उतर गया और उन्होंने मुझसे जाने को कहा। गंगवार के साथ उस चेम्बर में बैठकर बातें करते हुए ऐसे और भी दिलचस्प वाकये याद आ रहे थे।

Credit: DPS Bokaro

पुराने सहकर्मियों में शीला राय शर्मा और महापात्रा जी से भेंट हुई। शीला मैम का अंदाज़ आज भी वही है। सोशल साइंस पढ़ाने की उनकी यात्रा भी जारी। हिंदी और अंग्रेजी साहित्य से उनका लगाव पहले से ही था। आजकल कहानियों और कविताओं की रचना कर रही हैं। उनकी कहानियों के संकलन का शीर्षक है ‘खिड़की’। इसमें उन्होंने आज के समाज में तेजी से हो रहे बदलाव और उससे उत्पन्न विडंबनाओं को सुन्दर ढंग से चित्रित किया है।

महापात्रा जी के अपने किस्से ही काफी दिलचस्प हैं। अगर आपके पास समय हो तो आप देर तक उनकी बातों को सुन सकते हैं। पुराने लोगों में एक और व्यक्ति जो मौजूद था वह था अभिमन्यु। सरल, सौम्य व्यक्तित्व एवं चिर-परिचित मुस्कान।

देश के अलग-अलग हिस्सों से आए 91 बैच के विद्यार्थियों से मिलने का अनुभव खास था। नितिन, मृत्युंजय, प्रणव, जया, अमरेश, सुमित, मनोज, अनुपमा, तुषार, सुश्मिता, रंजन, गौतम, संजू, आशीष, सभी अपने-अपने पेशे में अनुभवी और निपुण हैं। उन्हें देखकर, उनसे मिलकर गर्व का अनुभव हुआ। सुमित की पत्नी डॉ वारिजा की कविता, ‘लिखूं कि ज़िन्दगी तुम्हारे बाद तुम्हें याद करे’, काफी अर्थपूर्ण थी। और उनके द्वारा उसका पाठ भी उतना ही मधुर। वैसे तो इस बैच के सभी लोगों की बातों को सुनना अच्छा लग रहा था। पर मनोज के किस्से लाजवाब थे। उसने हमें खूब हंसाया। मेरी तो हंसी रुक ही नहीं रही थी। पेशे से मनोज एक डॉक्टर हैं। लेकिन मुझे लगता है कि उनमें एक स्टैंडअप कॉमेडियन के सारे गुण मौजूद हैं।

लगभग 25 वर्षों के बाद इस मिलन के अनुभव को व्यक्त करना मेरे लिए मुश्किल हो रहा था। इसलिए जब मुझे स्टेज पर बुलाया गया तो मैंने शब्दों को जोड़-तोड़ कर कुछ इस तरह कहा:

Thirty five years ago
Destiny chose this place
For you and I
To meet exchange and grow

For two long years  
In the classroom
In the corridors
In the campus
On the grounds
Days after days

With boredom, pleasure or pain
In the sunshine or in the rain
There was a lot of churning
You and I both
Kept on learning, learning and learning

Then came the time
When in order to chart
A new course in your career
You had to move to a new location
You had to begin a new chapter
We said goodbye to each other
And we parted

Thirty three years after that parting
When we are meeting once again
I am trying to figure out 
If I am the same as I was then
And if you are the same as you were then

Probably we are partly the same
And partly we are not the same
Our memories of people, places
Days and moments
May have remained the same
But we all have changed
After all these years
Each one of us
Is a different being today

On the occasion of this celebration
I must say
That today it is both
A reunion of memories
And a union of new beings
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यादों की इक बारात
आई है ढूंढ़ने
उन बेंचों, कुर्सियों, दीवारों, सीढ़ियों
उन ध्वनियों, चेहरों, गीतों और गलियों को
दौड़ती हुई उन सांसों को
अनगिनत उन बातों को

पर यहां तो खंडहर है
यादों का एक खंडहर
कहां है बचा अब कुछ भी यहां

बचे हैं तो बस
कुछ क़िताबों की गंध
कुछ बिखरे हुए पन्ने
स्याही की बूंदें
गीतों की गूंज
खेलों की प्रतिध्वनियां
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Credit: DPS Bokaro

गंगवार जी के नेतृत्व में सम्पन्न यह समारोह शानदार रहा। स्वागत से लेकर कार्यक्रम का हरेक पक्ष सराहनीय था। शिक्षक-शिक्षिकाओं, बच्चों एवं गंगवार जी समेत उनकी पूरी टीम को हार्दिक बधाई और आभार।

बहुत सारे परिचित स्थानों जैसे सिटी सेंटर, खट्टा-मीठा, सेक्टर सिक्स वगैरह पर जा नहीं पाया। जाकर देखता कि वे वैसे ही हैं या बदल गये। कई प्रियजनों से मिलना रह गया। समय कम था। खैर, कभी और सही।

Published by Arun Jee

Arun Jee is a literary translator from Patna, India. He translates poems and short stories from English to Hindi and also from Hindi to English. His translation of a poetry collection entitled Deaf Republic by a leading contemporary Ukrainian-American poet, Ilya Kaminski, was published by Pustaknaama in August 2023. Its title in Hindi is Bahara Gantantra. His other book is on English Grammar titled Basic English Grammar, published in April 2023. It is is an outcome of his experience of teaching English over more than 35 years. Arun Jee has an experience of editing and creating articles on English Wikipedia since 2009. He did his MA in English and PhD in American literature from Patna University. He did an analysis of the novels of a post war American novelist named Mary McCarthy for his PhD

2 thoughts on “बोकारो बसे मेरे मन में

  1. आपकी पोस्ट ने सचमुच दिल छू लिया। पुराने शहर, पुराने दोस्त और पुराने दिनों की यादें जीवन में एक विशेष स्थान रखती हैं। विशेष रूप से वह पल जब आप चिड़ियों के गीत सुनते हुए पुराने स्थानों को याद कर रहे थे, बहुत ही सुंदर है। आपकी यात्रा को देखकर लगता है कि समय और स्थान के बीच का रिश्ता हमेशा हमें कुछ न कुछ सिखाता है।

    बोकारो और डीपीएस बोकारो के साथ जुड़ी आपकी यादें भी बहुत प्रेरणादायक हैं। ऐसे समारोहों से जुड़ना और पुराने साथियों से मिलना, एक अद्भुत अनुभव होता है।

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