एक दिन आशियाना नगर के चौक पर मुझे रामाश्रय सिंह गौतम मिले। पेशे से डॉक्टर हैं। उम्र में मुझसे बड़े। हमलोग उन्हें डॉ गौतम के नाम से जानते हैं। वे पार्क से लौट रहे थे। और मैं वहीं सैर के लिए जा रहा था। अच्छा संयोग था। नहीं तो प्रायः हमारी मुलाकात नहीं हो पाती है। वह जल्दी वाले हैं। और मैं हूं थोड़ा लेट लतीफ़।
मैंने उन्हें गुड मॉर्निंग कहा। फिर उनके आम के पेड़ की ओर इशारा कर बताया कि आपका यह पेड़ बहुत सुंदर दिखता है। चौक से उनका घर बिल्कुल पास है। केवल बीस कदम की दूरी पर। उनका पेड़ वहीं से दिखाई पड़ता है। घर की शान में सीधा खड़ा।
पेड़ का जिक्र होते ही वे उदास हो गये। उन्होंने कहा, अरुण जी, क्या कहूं? इस बार हमारे पेड़ पर मंजर नहीं आये हैं। इसके रसीले फलों से इस बार हमें वंचित होना पड़ेगा। मैंने भी गौर किया कि सचमुच उनके पेड़ पर मंजर नहीं दिख रहे थे।
अप्रैल का पहला सप्ताह था। आशियाना नगर के ज्यादातर पेड़ों पर मंजर आ चुके थे। कुछ ऐसे जरूर थे जिन पे इस बार मंजर या तो कम थे या बिल्कुल नहीं। आम के पेड़ पर आने वाले फूलों को ही मंजर कहते हैं। इन फूलों के नहीं आने का दर्द मेरे अंदर भी था। हमारे घर के सामने भी आम के पेड़ हैं। हमें मालूम है कि फूल नहीं तो फल नहीं।
मैंने बात बदलते हुए उनसे कहा कि आप ऐसा क्यों समझते हैं कि आपके पेड़ की उपयोगिता केवल फल तक ही सीमित है। यह आपको छाया देता है। इसके कारण आपके घर के आसपास का तापमान कम रहता है। यहां पक्षियों का बसेरा है। वे रोज अपनी चहचहाहट से आपके घर को गुलज़ार रखते हैं। अपने मधुर गीतों से वे रोज़ एक नये दिन का स्वागत करते हैं। पेड़ के और भी कई फायदे हैं। इस वर्ष फल नहीं खाने को मिलेगा तो क्या हुआ? फल तो आप खरीदकर खा सकते हैं। पर इन फायदों को आप पैसों से नहीं खरीद सकते।
ये सारी बातें मैंने कुछ सोच-समझकर नहीं कहे थे। वे मेरे मुंह से अचानक निकल गये। वैसे भी मैंने उन्हें कोई नयी बात नहीं बताई थी। वे खुद जानकार व अनुभवी व्यक्ति हैं। पर सुनकर वे काफी खुश हुए। उनका चेहरा खिल उठा। मुझे धन्यवाद कहकर अपने घर की ओर चल पड़े।
अगली सुबह जैसे ही पार्क में पहुंचा, उन्होंने मुझे अपनी ओर बुलाया और कहा कि मैं उनके साथ उनके घर चलूं। मुझे थोड़ा अजीब सा लगा कि अभी अभी मैं मॉर्निंग वॉक के लिए आया हूं, पता नहीं ये मुझे किसलिए घर लेकर जा रहे हैं? फिर भी मैंने कुछ पूछा नहीं। बस उनके साथ हो लिया। वहां पहुंचकर उन्होंने मुझे अपने पेड़ से मिलवाया। उसपर लगे झूले पर बिठाया। और आम के उस पेड़ से जुड़ी कुछ कहानियों को साझा किया। पेड़ के सानिध्य में उन बातों को सुनना मुझे अच्छा लग रहा था।

आम के पेड़ से लगाव के ऐसे किस्से पटना के आशियाना नगर में खास हैं। यहां आपको कई उदाहरण मिलेंगे जिनमें लोगों ने अपने घरों के अंदर आम के पेड़ों को जगह दी। उन्हें सींचा। उनकी देखभाल की। गर्मी के मौसम में उनके फलों को तोड़कर ख़ुद भी खाया। दूसरों को भी खिलाया। अपने पेड़ों पर उन्हें गर्व है। आप उनसे बात करें तो उनके पास उन पेड़ों से जुड़ी रोचक कहानियां मिलेगीं। फलों के प्रकार, उनके स्वाद, उनके इतिहास के बारे में।
लगभग पचास एकड़ में फैले, चारों ओर बाउंड्री वॉल से घिरे इस नगर में प्रवेश के तीन गेट हैं। अन्य सुविधाओं में यहां पार्क, कम्यूनिटी हॉल वगैरह हैं। पर सबसे महत्वपूर्ण यहां आम के कुल 235 पेड़ हैं। पेड़ों की यह संख्या मुझे मिली सुधीर कुमार सिंह से। पिछले सप्ताह उन्होंने पूरे नगर का दो बार चक्कर लगाया और हरेक पेड़ की गिनती की। सुधीर जी नगर के पूर्वी हिस्से में रहते हैं। अपने घर के सामने उन्होंने भी एक पेड़ लगाया है।
1986 में आशियाना नगर की स्थापना के बाद की जो पीढ़ी यहां बसने आई उनमें पेड़ों के प्रति खास प्रेम रहा। अपने घरों में या बाहर पेड़ों को उन्होंने इसलिए नहीं लगाया क्योंकि उनके बारे में किताबों में पढ़ा था। या पेड़ों से प्रेम करने के लिए उन्हें स्कूलों में सिखाया गया था। बचपन से वे एक ऐसी संस्कृति का हिस्सा रहे जिन्हें पेड़ों से लगाव रहा।
नगर के पश्चिमी हिस्से में गेट नंबर 3 वाली सड़क पर उर्मिला जी का घर है। वह सरकारी स्कूल में अध्यापिका थीं। उनका परिवार आशियाना में 1993 में शिफ्ट हुआ। पति श्रीकांत जाने-माने लेखक व पत्रकार हैं। उर्मिला जी बताती हैं कि शुरू के दिनों में यहां से आशियाना मोड़ जाने के लिए रिक्शा मुश्किल से मिलता था। दो किलोमीटर की दूरी प्रायः उन्हें पैदल तय करना पड़ता था। उस समय गेट नंबर वन से थोड़ा आगे दाहिनी ओर एक डाकघर हुआ करता था। डाकघर से रामनगरी के रास्ते में ऐसे कई घर थे जिनमें आम के पेड़ लगे थे। गर्मी के दिनों में फलों से लदे, मच्छरदानी से ढके वे उन्हें काफी आकर्षित करते थे। उनसे प्रेरित होकर उन्होंने भी अपने घर में दो आम्रपाली नस्ल के पेड़ लगाए। उनमें से एक को जगह की कमी के कारण हटाना पड़ा। पर दूसरा उन्हें प्रत्येक वर्ष रसीले फलों का उपहार प्रदान करता है। उन्हें वो दोस्तों, रिश्तेदारों में बांटती रहती हैं।
उर्मिला जी की बेटी एकता आर्किटेक्ट है। उसने 2013 में घर के रेनोवेशन के दौरान इस बात का खास ख़्याल रखा कि आम का वो पेड़ बचा रहे। रेनोवेशन के बाद घर का पूरा नक्शा बदल गया। लेकिन पेड़ घर के बीचोबीच अपनी जगह पर खड़ा है। उर्मिला जी के घर का यह नया डिज़ाइन आशियाना नगर में भवन निर्माण का बेहतरीन नमूना है। उसकी सुंदरता के कई आयाम है। पर सबसे महत्वपूर्ण यह कि इसमें किसी पेड़ की बलि नहीं चढ़ी।
आशियाना में पेड़ के संरक्षण की एक और कोशिश के बारे में जानकारी दी बैद्यनाथ प्रसाद ने। बैद्यनाथ प्रसाद आशियाना के पुराने निवासी हैं। 1987 से यहां रह रहे हैं। उनका घर पार्क नंबर 1 के दक्षिण पूर्वी कोने पर स्थित है। पेशे से इंजीनियर हैं। उन्होंने बताया कि उनके सामने अरुण ठाकुर के घर में निर्माण के दौरान आम के पेड़ को कोई क्षति नहीं पहुंची। अरुण ठाकुर के यहां पेड़-पौधों की पूरी देखभाल उनकी पत्नी अनीता ठाकुर करती हैं। घर के पीछे एक शेड के निर्माण के दौरान अनीता जी ने आम के पेड़ से छेड़छाड़ नहीं होने दी।
बैद्यनाथ प्रसाद के अपने घर में चार आम के पेड़ थे। अब दो बचे हैं। एक पेड़ को उन्होंने शुरू में ही हटा दिया था। पर दूसरे को वे हटाने के पक्ष में नहीं थे। उसके साथ उनका बहुत लगाव था। उसे वह पूर्णियां से लेकर आये थे। घर के विस्तार के दौरान पिछले साल जब उसकी बलि चढ़ी तब वे उसके पक्ष में नहीं थे। उसके ठीक बाद वे डेंगू से पीड़ित हो गये और पेड़ के जाने का ग़म उन्हें सताता रहा।

वैसे आज भी उनके घर में आम के दो बड़े बड़े पेड़ हैं। उन दोनों की घनी छाया के बीच एक सुंदर सा झूला लगा है। आस-पास और कई पौधे लगे हैं। उनकी सफाई और सुन्दरता को देखकर जब मैंने उनसे कहा कि वाह, आप इन सब की अच्छी देखभाल कर रहे हैं। उनका जवाब था, ये कमाल मेरा नहीं, रेणु प्रसाद एवं तृष्णा का है। पेड़-पौधों की देखभाल में हमारे यहां इन्हीं दोनों का योगदान है। रेणु प्रसाद बैद्यनाथ प्रसाद की जीवनसंगिनी हैं। तृष्णा उनकी पुत्रवधू जो मैनेजमेंट में पीएचडी हैं एवं पटना के एक कॉलेज में लेक्चरर के पद पर कार्यरत।
गेट नंबर 2 के पास रागिनी जी का घर है। उनके पति सुधीर कुमार इंजिनियर हैं। जैसे ही आप उनके हाते में दाखिल होते हैं सामने आपके स्वागत में खड़ी मिलती है मल्लिका। रागिनी जी इसे 2013 में लेकर आई थीं। गर्मी के दिनों में पत्तों और फलों से आच्छादित मल्लिका अभी जवानी की दहलीज़ पर खड़ी है।
रागिनी जी सालों-साल पति की नौकरी के सिलसिले में अलग-अलग शहरों में रहीं। लेकिन जब कभी भी वह यहां आतीं तो उन्हें पड़ोसियों के घरों में लगे आम के पेड़ लुभावने लगते थे। पति के अवकाश प्राप्त करने के बाद जब वो यहां आईं तो सबसे पहले उन्होंने लगाया यह पेड़। मल्लिका। रागिनी जी को पेड़-पौधों से काफी लगाव है। अपने किचन गार्डन में प्रायः कुछ नये नये प्रयोग करती रहती हैं। आजकल उन्होंने एक लीची का पेड़ लगाया है।
गेट नंबर 2 से प्रवेश करने पर क़रीब पचास मीटर बाद पूरब की ओर जो सड़क मंदिर के लिए मुड़ती है उसी के कोने पर एक घर है। आजकल उसमें हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता योगेश चन्द्र वर्मा रहते हैं। क़रीब बीस वर्ष पहले उसकी निचली मंजिल के पिछले हिस्से में एक किरायेदार रहती थीं। नाम था बिमला सिन्हा। हमलोग उन्हें बीमो दी कहकर पुकारते थे। उनके पति शरदचंद्र चिकित्सक हैं। नौकरी के सिलसिले में अलग-अलग शहरों में रहते थे। इसलिए बीमो दी उन दिनों अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए पटना में रह रही थीं।
उस घर में दो आम के पेड़ थे। मकान मालिक/मालकिन की अनुपस्थिति में पेड़ों की देखरेख बीमो दी ही करती थीं। गर्मी की छुट्टियों में जब हम राजकोट (गुजरात) से आशियाना आते तो उन पेड़ों के फलों का स्वाद चखने को मिलता था। बेटी मेधा पेड़ों से नीचे झूलते हुए फलों को देखकर काफी आकर्षित होती थी। एक बार उसने एक पके हुए आम को अपने हाथों से तोड़ा था। मेधा उस समय छोटी थी। पर यह उसके लिए एक बड़ी बात थी।
अस्सी के मध्य में जब लोग आशियाना में बसने लगे तब यातायात के साधनों का यहां सर्वथा अभाव था। आशियाना से दीघा लगभग दो किलोमीटर की दूरी पर है, गंगा के किनारे। उस वक्त आशियाना दीघा रोड की स्थिति बहुत ख़राब थी। 88-89 के दौरान एक बार हमें रिक्शे में कुर्जी अस्पताल (दीघा) जाने का अवसर मिला था। याद है कि हमें कितने हिचकोले खाने पड़ते थे। पर दीघा के पास पहुंचते ही हमारी थकान दूर हो जाती थी। वहां आम के बगीचों को देखकर हमें बड़ा सुकून मिलता था। दुधिया मालदह के ढेर सारे बाग थे।
आनेवाले वर्षों में जैसे जैसे इस इलाके में नई कॉलोनी व नगर बसते गए, यातायात की सुविधाओं में वृद्धि होती गई। मनुष्य का आना-जाना बढ़ता गया और आमों के वे बाग सिकुड़ते चले गए। अब वे केवल दो जगह सिमट कर रह गए हैं। एक सेंट जेवियर्स कॉलेज के कैम्पस में और दूसरा सदाकत आश्रम के अहाते में। हालांकि सेंट जेवियर्स कॉलेज में उनकी संख्या अब बहुत कम है। पिछले कुछ वर्षों में कॉलेज का विस्तार हुआ। और बहुत सारे पेड़ इस विस्तार के शिकार हो गए। सदाकत आश्रम में भी पेड़ों के भविष्य पर खतरा मंडरा रहा है।
दिलचस्प है कि जिस समय दीघा के बागानों के सिकुड़ने की शुरुआत हुई उसी समय आशियाना नगर में इन पेड़ों के लगने का आरम्भ भी। यही वो समय था जब आशियाना नगर में लोग अपने घरों में या उसके आसपास आम का वृक्षारोपण कर रहे थे। हालांकि दीघा के उन बागानों के अनुपात में यहां पेड़ों की संख्या नगण्य है।
पर एक कॉलनी के रूप में अगर देखें तो आज भी आशियाना नगर में आम के पेड़ों की संख्या अच्छी है। अन्य पेड़ों की भी। पटना की अन्य कॉलोनियों की अपेक्षा काफी अधिक। यही कारण है कि यहां शहर के अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा प्रदूषण का असर कम है।
सवाल यह है कि यह स्थिति यहां कितने दिनों तक बनी रहेगी? क्योंकि पिछले कुछ सालों में भवन निर्माण में तेजी से हो रहे बदलाव के कारण यहां कुछ पेड़ों की कटाई भी हुई है, जो चिन्ता का विषय है। अगर भवन निर्माण की इस नयी प्रवृत्ति, जिसमें हम पेड़ों से दूरी बनाते जा रहे हैं, का इसी तरह फैलाव होता गया तो इस नगर की सबसे बड़ी विशेषता से हम वंचित होते चले जाएंगे। फिर यह एक खास नगर नहीं, बल्कि पटना का एक आम नगर बनकर रह जाएगा।
जो बीज हम बोते है उसी बीज के अंकुर फूटने पर जीवन दिखाई पड़ने लगता है कुछ लोग बस अपना ध्यान फल और फूल पर रखते है
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बिल्कुल सही।
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Sir मेरे ब्लॉग पढ़ो एक दिशा बोध होगा
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एक नज़र में मुझे समझ आ रहा है कि आपकी लेखनी में प्रवाह है। आप हिंदी और अंग्रेजी दोनों में लिख सकते हैं। और आपके ब्लाग्स का विषय है आध्यात्म।
वैसे तो आध्यात्म के बारे में मैं बहुत कुछ नहीं जानता हूं। पर मेरी राय में अगर आप इसमें कुछ कहानियों को जोड़ सकें तो पाठकों के लिए और भी रुचिकर हो सकता है। दूसरी बात ये कि अपने वेबसाइट पर प्रकाशित करने के पहले एक बार अच्छी तरह देख लें कि कोई त्रुटि तो नहीं है। और तीसरी सबसे महत्वपूर्ण कि खूब पढ़ें। अच्छे-अच्छे लेखकों को पढ़ने से आपका लेखन सशक्त होगा। जीवन, समाज और दुनियां के बारे में जानकारी बढ़ेगी। ज्ञान का विस्तार होगा।
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ये ज्ञान किसी भी व्यक्ति के भीतर कोई किरण नहीं जगा सकता जब तक व्यक्ति इस ज्ञान को अपने जीवन से न जोड़ इस पर स्व विश्लेषण न कर ले
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