घने अन्धकार में खुलती खिड़की: ईरानी स्त्रियों के लोकतांत्रिक संघर्ष की दास्तां

इन दिनों मेरी किताब है लेखक अनुवादक यादवेन्द्र की घने अन्धकार में खुलती खिड़की। इसी वर्ष सेतु से प्रकाशित हुई है। यह पुस्तक ईरान में महिलाओं के अधिकारों के हनन के विरोध में लगातार उठतीं आवाजों का एक संकलन है। वैसी आवाजें जो संस्मरण, चिट्ठियां, सिनेमा, कहानियां, कविताएं एवं ब्लाग्स के माध्यम से महिलाओं नेContinue reading “घने अन्धकार में खुलती खिड़की: ईरानी स्त्रियों के लोकतांत्रिक संघर्ष की दास्तां”

द ब्लू बुक: अमिताभ कुमार की डायरी

वर्षों पहले जब मैं गुजरात के राजकोट शहर में था, तब अमिताभ कुमार की चर्चित पुस्तक हसबैंड आॉफ द फनैटिक को पढ़ने का मौका मिला था। पटना में दिलचस्पी होने के कारण उनकी दूसरी किताब चूहों की बात (ए मैटर आॉफ रैट्स) भी पढ़ा था। इसलिए कुछ दिन पहले अमित वर्मा के, द सीन ऐंडContinue reading “द ब्लू बुक: अमिताभ कुमार की डायरी”

जतिन दास की पेंटिंग और वो कहानी

प्रसिद्ध चित्रकार जतिन दास की इस पेंटिंग को देखकर मुझे अंग्रेजी की एक कहानी याद आ गई। इसे नब्बे के दशक में मैं क्लास 12 के विद्यार्थियों को पढ़ाता था। वैसे ये पेंटिंग मेरे लिए बस एक ट्रिगर है कहानी शेयर करने के लिए। क्योंकि पेंटिंग और कहानी में कई असमानताएं भी हैं। कहानी कुछContinue reading “जतिन दास की पेंटिंग और वो कहानी”

… के लिए

खुले आसमान में नृत्य करने के लिएचुम्बन और प्रेम के डर के लिएमेरी बहन, तुम्हारी बहन, हमारी बहनों के लिएसड़ी गली सोच को बदलने के लिएअपनी ग़रीबी पर शर्म करने के लिएएक सामान्य जीवन की चाहत के लिएकूड़े बीनने वाले बच्चों और उनके भविष्य के लिएतुम्हारे थोपे हुए अर्थतंत्र के लिएप्रदूषित हवा के लिएहमारी उनContinue reading “… के लिए”

एक अफगान चींटी

एक अफगान चींटी: रूसी कविता (1983)कवि: Yevgeny Yevtushenkoरूसी से अंग्रेजी: Boris Dralyukअंग्रेजी से हिंदी: Arun Jeeसोवियत अफगान युद्ध के संदर्भ में लिखी गई कविता एक अफगान चींटीएक रूसी जवान अफगान जमीं पर मरा पड़ा थाएक मुस्लिम चींटी उसके खूंटीदार गाल पर चढ़ी—इतनी मुश्किल चढ़ाई — काफी मेहनत के बाद वोसैनिक के चेहरे तक पहुंची, उसेContinue reading “एक अफगान चींटी”

गांधी की हत्या पर एक अमरीकी उपन्यासकार के विचार (1949)

“सुना तुमने, उन्होंने महात्मा को ठिकाने लगा दिया,” एक महिला सहकर्मी ने सारा लॉरेंस कॉलेज के कॉफी हाउस में खाने की मेज पर बैठते हुए कहा। बातचीत की शुरुआत करते हुए उन्होंने महात्मा शब्द को इस लहजे में कहा मानो गांधी एक ढोंगी साधु हों, एक सपेरा। “महात्मा?” एक महिला अध्यापिका ने दोहराया, अपने कांटेContinue reading “गांधी की हत्या पर एक अमरीकी उपन्यासकार के विचार (1949)”