बिहार में पर्दा प्रथा का विरोध: गांधी एवं रामनंदन मिश्र

स्वतन्त्रता आन्दोलन के दौरान महात्मा गांधी ने कई महत्वपूर्ण आन्दोलनों का नेतृत्व किया था और उनकी चर्चा बार-बार होती है। पर 1928 के आसपास बिहार में पर्दा प्रथा के खिलाफ उन्होंने जो आन्दोलन चलाया था, उसके बारे में शायद कम लोग जानते होंगे। मैं भी इससे वाक़िफ नहीं था। पिछले सप्ताह मुझे जगजीवन राम पार्लियामेंट्रीContinue reading “बिहार में पर्दा प्रथा का विरोध: गांधी एवं रामनंदन मिश्र”

Mokama Ghat: a discovery

In the British period there were several Ghats along the winding course of the river Ganga in UP, Bihar and West Bengal. They were used for the shipment of cargo and passengers across the river. They served as important links for trade and commerce. However such a Ghat would lose its importance as soon asContinue reading “Mokama Ghat: a discovery”

बिहार चुनाव और हरिशंकर परसाई

बिहार में जब-जब चुनाव आता है हमें हरिशंकर परसाई ख़ूब याद आते हैं। ख़ासकर उनकी कहानी ‘हम बिहार में चुनाव लड़ रहे हैं’। बिहार चुनाव पर एक तीखा व्यंग। कहानी का एक अंश कुछ इस प्रकार है: ——- चुनाव के समय गांव में एक भेड़िया प्रकट होता है। वह एक मेमने के पीछे चल पड़ताContinue reading “बिहार चुनाव और हरिशंकर परसाई”

कहां महात्मा बुद्ध और कहां संत टरंम्प?

बुद्ध, मंटो एवं टरंम्प की कहानियां पिछले सप्ताह यादवेन्द्र जी से बातचीत में मुझे पाकिस्तान की एक कहानी याद आ गई। बातचीत के संदर्भ के बारे में हम आगे बात करेंगे। पहले वो कहानी। पाकिस्तान के सीमावर्ती गांव में एक चौपाल पर कुछ लोग जमा थे। परेशान थे यह जानकर कि भारत ने सिंधू नदीContinue reading “कहां महात्मा बुद्ध और कहां संत टरंम्प?”

पटना की एक कॉलोनी में सबके अपने-अपने आम

एक दिन आशियाना नगर के चौक पर मुझे रामाश्रय सिंह गौतम मिले। पेशे से डॉक्टर हैं। उम्र में मुझसे बड़े। हमलोग उन्हें डॉ गौतम के नाम से जानते हैं। वे पार्क से लौट रहे थे। और मैं वहीं सैर के लिए जा रहा था। अच्छा संयोग था। नहीं तो प्रायः हमारी मुलाकात नहीं हो पातीContinue reading “पटना की एक कॉलोनी में सबके अपने-अपने आम”

नगर के कुत्ते

हमारे नगर में आजकल कुत्तों का प्रकोप बढ़ रहा है। हर गली में यहां आपको दो-चार मिल जाएंगे। अलग-अलग रंगों के कुत्ते। उजले, काले, लाल, चितकबरे। वैसे मैं पालतू कुत्तों की बात नहीं कर रहा। अपने मालिक के टुकड़ों पर पलने वाले उन कुत्तों की बात अलग है। प्रकोप तो नगर में उनका भी है।Continue reading “नगर के कुत्ते”

बोकारो बसे मेरे मन में

22 दिसंबर, रविवार का दिन। सुबह सुबह मेरी नींद खुली चिड़ियों के कलरव से। उठा तो अहसास हुआ कि पटना के चिल्ल-पों से दूर मैं अपने पुराने शहर बोकारो में हूं। महेश मामू-शर्मिष्ठा मामी के घर। पिछले शाम ही वहां पहुंचा था। डीपीएस बोकारो के पहले बैच के स्टुडेंट्स के पुनर्मिलन समारोह में शामिल होने।Continue reading “बोकारो बसे मेरे मन में”

आइफ़िल टावर की सैर

पिछले वर्ष अरुण एवं बन्दना की पेरिस यात्रा पर आधारित पेरिस पहुंचने के तीन दिन बाद हमारा पड़ाव था आइफ़िल टावर। भारत में उस दिन (22 अक्टूबर) नवरात्रि के त्योहार का नौवां दिन था। सोशल मीडिया पर दुर्गा पूजा के चहल-पहल की खबरें आ रही थीं। पटना के पूजा पंडालों में लोगों की भीड़ उमड़नेContinue reading “आइफ़िल टावर की सैर”

अल्बैर कामू का उपन्यास अजनबी

फ्रांसीसी लेखक अल्बैर कामू का बहुचर्चित उपन्यास द स्ट्रेंजर 1942 में प्रकाशित हुआ। इसके हिंदी रुपांतरण ‘अजनबी’ के अनुवादक हैं राजेन्द्र यादव। राजकमल से प्रकाशित हुई है। ‘अजनबी’ पर अपने विचार प्रस्तुत कर रही हैं बन्दना। अल्बैर कामू का उपन्यास अजनबी विश्व साहित्य के श्रेष्ठतम उपन्यासों में से एक माना जाता है। कहानी, किरदार, थीम,Continue reading “अल्बैर कामू का उपन्यास अजनबी”

लोकतंत्र के भूत, वर्तमान और भविष्य की कहानी: अरुण जी

प्रभात प्रणीत के उपन्यास ‘वैशालीनामा: लोकतंत्र की जन्मकथा’ पर प्रस्तुत है एक चर्चा। क़िताबें आपकी आलमारियों की शोभा बढ़ाती हुई अक्सर आपको लुभाती हैं। कहती हैं कि आओ मुझे देखो, मुझे खोलो, मेरी दुनिया में प्रवेश करो। कुछ किताबों को आप खोलते हैं, फिर पन्नों को पलट कर रख देते हैं। कुछ में आप प्रवेशContinue reading “लोकतंत्र के भूत, वर्तमान और भविष्य की कहानी: अरुण जी”