बिहार में पर्दा प्रथा का विरोध: गांधी एवं रामनंदन मिश्र

स्वतन्त्रता आन्दोलन के दौरान महात्मा गांधी ने कई महत्वपूर्ण आन्दोलनों का नेतृत्व किया था और उनकी चर्चा बार-बार होती है। पर 1928 के आसपास बिहार में पर्दा प्रथा के खिलाफ उन्होंने जो आन्दोलन चलाया था, उसके बारे में शायद कम लोग जानते होंगे। मैं भी इससे वाक़िफ नहीं था। पिछले सप्ताह मुझे जगजीवन राम पार्लियामेंट्रीContinue reading “बिहार में पर्दा प्रथा का विरोध: गांधी एवं रामनंदन मिश्र”

रेणु की कितने चौराहे: एक समीक्षा

फणीश्वर नाथ रेणु की कितने चौराहे एक प्रेरणादाई उपन्यास है। एक बालक के बड़े होने की कहानी, जिसमें परिवार, समाज और देश बराबर के भागीदार हैं। इस उपन्यास के लिए रेणु ने हमारे देश के एक महत्वपूर्ण काल खंड को चुना है। 1930-1942 का समय जब अंग्रेजों के खिलाफ आज़ादी की लड़ाई में महात्मा गांधीContinue reading “रेणु की कितने चौराहे: एक समीक्षा”

महात्मा गांधी और मैं: समीक्षा

स्वतन्त्रता आन्दोलन के दौरान महात्मा गांधी ने कई महत्वपूर्ण आन्दोलनों का नेतृत्व किया था और उनकी चर्चा बार-बार होती है। पर 1928 के आसपास बिहार में पर्दा प्रथा के खिलाफ उन्होंने जो आन्दोलन चलाया था, उसके बारे में शायद कम लोग जानते होंगे। मैं भी इससे वाकिफ नहीं था। पिछले सप्ताह मुझे Jagjivan Ram ParliamentaryContinue reading “महात्मा गांधी और मैं: समीक्षा”

गांधी की हत्या पर एक अमरीकी उपन्यासकार के विचार (1949)

“सुना तुमने, उन्होंने महात्मा को ठिकाने लगा दिया,” एक महिला सहकर्मी ने सारा लॉरेंस कॉलेज के कॉफी हाउस में खाने की मेज पर बैठते हुए कहा। बातचीत की शुरुआत करते हुए उन्होंने महात्मा शब्द को इस लहजे में कहा मानो गांधी एक ढोंगी साधु हों, एक सपेरा। “महात्मा?” एक महिला अध्यापिका ने दोहराया, अपने कांटेContinue reading “गांधी की हत्या पर एक अमरीकी उपन्यासकार के विचार (1949)”