नरेश शर्मा
मेरे मित्र अरुण जी, पूर्व प्राचार्य डीपीएस, जिन्हे मैं काफी पहले से जानता हूं। प्राचार्य और प्रोफेसर तो मेरे अनेकों मित्र हैं, पर अरुण जी थोड़ा हट कर हैं।
उन्होंने एक अंग्रेजी कविता संग्रह, डेफ रिपब्लिक, का हिंदी में अनुवाद किया है। शीर्षक है बहरा गणतंत्र। अमरीकी कवि इल्या कामिंस्की के इस संग्रह में युद्ध की विभीषिका का चित्रण है। इसमें दिल को झकझोरने बाली रोचक कहानी है। डेफ रिपब्लिक के रचयिता यूक्रेनी मूल के हैं।
वर्तमान में यूक्रेन और रूस युद्ध की विभीषिका का अंदाजा इस पुस्तक से लगाया जा सकता है। जिस तरह यूक्रेन में आजकल मिसाइल और बम के हमलों से रिहायशी इलाकों में हजारों निर्दोष लोग, गर्भवती महिलाएं सहित और बच्चे मारे जा रहे हैं, उसी तरह के एक युद्ध का चित्रण इस बहरा गणतंत्र में किया गया है। जिसमें अपने ही देश की सेना थिएटर देख रही पब्लिक पर गोलियां चलाती है और लोगों को भागने को कहती है। इसमें एक बहरे बालक की हत्या हो जाती है। बच्चे का शव सड़क के किनारे पड़ा है।
अल्फोंसो और सौन्या की नई शादी हुई है। अल्फोंसो अपनी पत्नी को बहुत प्यार करता है। उनकी एक नन्ही बच्ची है।पत्नी को गोली लग जाती है। बच्ची अनुष्का वहीं पड़ी है। यह एक हृदयबिदारक दृश्य है।
युद्ध की ऐसी बहुत सारी विभीषिकाओं को इस पुस्तक में चित्रित किया गया है।
पुस्तक खरीदने और पढ़ने योग्य। ———————————–
रीता सिंह
आज बहरा गणतंत्र पढ़ा। यूक्रेनी-अमरीकी कवि इल्या कामिंस्की का कविता संग्रह। पटना के अरुण जी द्वारा हिन्दी में अनुवादित है।
युद्ध त्रासदी झेल रहे देशवासियों की पीड़ा का वर्णन कवि ने कुछ अलग ढंग से किया है। सिपाहियों की बर्बरता का विरोध पूरा प्रदेश मूक बधिर बनकर करता है। एक मूक बधिर बच्चे, पेट्या, की निर्मम हत्या स्थानीय लोगों की आत्मा को झकझोर देती है।
यूं तो (इस) कविता संग्रह में अनेक कविताएं हैं पर मुझे पूर्वाद्ध की कविताएं ज्यादा संवेदनशील लगीं। उत्तरार्द्ध की कविताएं शायद हमारी संस्कृति से थोड़ा हटकर हैं। इसलिए उतनी दिल के करीब नहीं लगीं।
“साहित्य समाज का दर्पण होता है”। पहले कहीं पढ़ा था। कामिंस्की की कविताओं ने इसे प्रमाणित किया (है)।
अरुण जी को कोटिशः धन्यवाद। जिन्होंने इस महाकाव्य का हिंदी रूपांतरण बखूबी किया है। तभी तो हम इससे रूबरू हो पाये।
इस संग्रह का पूरा सार मेरी समझ में ये चार पंक्तियां हैं:
“ऐसा नहीं है कि मेरे कान अब हो गए हैं निर्बल बल्कि हमारा मौन हमें बनाता है और भी प्रबल।”। ———————————-
दीपनारायण प्रसाद
इल्या कामिंस्की द्वारा लिखित कविता जो अंग्रेजी में है उसका हिन्दी अनुवाद कर आपने हम जैसे हिन्दी विद्यालयों में पढ़ें पाठकों के लिए इसे समझना आसान कर दिये। इसके लिए आप का बहुत बहुत आभार।
पूरे विश्व में अनेक कालखंडों में यह देखा गया है कि जब जब सत्ता की कुर्सी पर बैठने वाला शासक तानाशाह हो जाता है, राजा बहरा हो जाता है तब तब जनता के लोकतांत्रिक अधिकारों को दबाया जाता है। जब लोकतंत्र बहरा हो जाता है तब लेखकों पत्रकारों या सत्ता से सवाल करने वालों पर कहर बरसाया जाता है। जैसा कि बहरा गणतंत्र कविता को पढ़ने से ज्ञात होता है। इसके भुक्तभोगी लेखक इल्या भी है।आज बहरा गणतंत्र की आहट अपने देश में भी दिखाई पड़ता है।
कुल मिलाकर एक बार पुनः आप को बहुत बहुत बधाई। आशा है जल्द ही आपका अगला हिन्दी अनुवाद हमें उपलब्ध हो पायेगा।
अर्चना सिंह
हाल में एक बहुत ही अच्छी पुस्तक “बहरा गणतंत्र” पढ़ने का सौभाग्य मिला। ये यूक्रेनी-अमेरिकी कवि इल्या कमिंस्की के कविता संग्रह “डेफ रिपब्लिक” का हिंदी अनुवाद है।
इस कविता संग्रह का अनुवाद अरुण जी ने इतनी बखूबी किया है कि कविता की मौलिकता खोने का कहीं भी अहसास नही हुआ।
बहरा गणतंत्र की कविताएं तानाशाही शासन के अंतर्गत तड़पते गणतंत्र को दर्शाती हैं। इसे कवि ने नाम दिया है ‘डेफ रिपब्लिक’। हिंदी में ‘बहरा गणतंत्र’।
यह एक गणतंत्र, एक देश की कहानी है। इसके शुरु में पेट्या नामक बालक को जब गोली मार दी जाती है तो उसकी बहन सौन्या के विलाप पर कवि लिखते है:
“उसकी हृदयविदारक चीख से
आसमान में सुराख हो जाता है…
सौन्या के खुले मुख में हम देखते हैं
सम्पूर्ण राष्ट्र की नग्नता…”
कितनी मार्मिक और दिल को झकझोर देने वाली पंक्तियां हैं।
एक अन्य काव्यांश में:
एक बुद्धू लड़का फूसफुसाता है… “बधिरता जिंदाबाद…” और सैनिकों पर थूकता है…
ये शब्द सैनिकों के खिलाफ लोगों का गुस्सा और विरोध की चरम सीमा को दर्शाते हैं।
इस पुस्तक में ऐसी बहुत सारी कविताएं हैं जो दिल को छूती हैं…विवशता का अहसास कराती हैं।
मन को मथने वाले इस कविता संग्रह के लिए कवि को साधुवाद। अरुण जी का अनुवाद भी काबिले तारीफ़ है। उनके अनुवाद ने कविता की आत्मा को जीवित रखा है।