वो युवक जिसने पेरिस में अपनी शादी रचाई होगी

मेरे मन में पेरिस से जुड़ी कहानियों की होड़ मची है। एक कहानी कह रही है मुझे निकालो, तो दूसरी कह रही मुझको कहो। कल देर रात हम फ्रांस में समुद्र पर बसे एक शहर की यात्रा से लौटे। वहां के मनोरम दृश्य और उनसे जुड़ी घटनाएं मन पर हावी थीं। पर अचानक आज सुबहContinue reading “वो युवक जिसने पेरिस में अपनी शादी रचाई होगी”

पेरिस में बच्चों ने मुझे कैसे ढूंढ़ा

बन्दना और बच्चों से अलग होने के बाद पेरिस के जिस मेट्रो स्टेशन पर मैं उतरा था उसका नाम है रिपब्लिक। यह पेरिस के एक महत्वपूर्ण स्मारक के बिल्कुल करीब है और उसका नाम भी रिपब्लिक (monument a la Republique) है। उसका निर्माण फ्रांसीसी क्रांति के 90वें सालगिरह के अवसर पर, 1879 में, हुआ था।Continue reading “पेरिस में बच्चों ने मुझे कैसे ढूंढ़ा”

पेरिस की पहली शाम और मैं खो गया

पेरिस की हमारी ये पहली शाम थी। हमने तय किया था कि सबसे पहले हम कुछ गर्म कपड़े खरीदेंगे। फिर सेन्न नदी के तट पर घूमेंगे। पुल से वहां के ऐतिहासिक स्थलों, इमारतों और शहर की गतिविधियों का अवलोकन करेंगे। सेन्न नदी पेरिस के ठीक बीच से होकर गुजरती है। यह शहर को दो भागोंContinue reading “पेरिस की पहली शाम और मैं खो गया”

चाय (महाकाव्य) की महिमा

पिछले सप्ताह मेरे व्हाट्सअप पर एक फोटो आया, जो नीचे संलग्न है। फोटो के नीचे लिखा था: चाय (महाकाव्य) पढ़िये। मेसेज भेजा था हमारे मुहल्ले के Rajiv Ranjan Prasad ने। फोटो को देखकर लगा कि राजीव जी ने अपने यहां मुझे चाय पे बुलाया है। उसी दिन जब वे शाम को मिले तो उन्होंने ‘चायContinue reading “चाय (महाकाव्य) की महिमा”

इल्या कमिन्स्की का काव्य-लोक: प्रेमकुमार मणि

मेरे नए मित्र अरुण जी (अरुण कमल नहीं) ने इल्या कमिन्स्की और उनकी कविताओं के बारे में जब पहली बार बात की थी, तभी से मैं इस कवि के बारे में उत्सुक था। ‘मगध’ के दूसरे अंक में अरुण जी का इस कवि पर लिखा गया एक लेख और उनकी कुछ कविताओं के अनुवाद प्रकाशितContinue reading “इल्या कमिन्स्की का काव्य-लोक: प्रेमकुमार मणि”

रेणु की कितने चौराहे: एक समीक्षा

फणीश्वर नाथ रेणु की कितने चौराहे एक प्रेरणादाई उपन्यास है। एक बालक के बड़े होने की कहानी, जिसमें परिवार, समाज और देश बराबर के भागीदार हैं। इस उपन्यास के लिए रेणु ने हमारे देश के एक महत्वपूर्ण काल खंड को चुना है। 1930-1942 का समय जब अंग्रेजों के खिलाफ आज़ादी की लड़ाई में महात्मा गांधीContinue reading “रेणु की कितने चौराहे: एक समीक्षा”

शीला राय शर्मा की खिड़की

इन दिनों मेरी किताब है शीला राय शर्मा की ‘खिड़की’। एक कहानी संग्रह। हाल में आई है प्रभात प्रकाशन से। इसमें एक से बढ़कर एक कहानियों के सुंदर नमूने हैं। और मौजूद हैं इसमें जीवन और समाज के तेजी से बदलते परिवेश की झलकियां। कहानियों को पढ़ते हुए लगता है कि परिवार, देश और दुनियाContinue reading “शीला राय शर्मा की खिड़की”

घने अन्धकार में खुलती खिड़की: ईरानी स्त्रियों के लोकतांत्रिक संघर्ष की दास्तां

इन दिनों मेरी किताब है लेखक अनुवादक यादवेन्द्र की घने अन्धकार में खुलती खिड़की। इसी वर्ष सेतु से प्रकाशित हुई है। यह पुस्तक ईरान में महिलाओं के अधिकारों के हनन के विरोध में लगातार उठतीं आवाजों का एक संकलन है। वैसी आवाजें जो संस्मरण, चिट्ठियां, सिनेमा, कहानियां, कविताएं एवं ब्लाग्स के माध्यम से महिलाओं नेContinue reading “घने अन्धकार में खुलती खिड़की: ईरानी स्त्रियों के लोकतांत्रिक संघर्ष की दास्तां”

द ब्लू बुक: अमिताभ कुमार की डायरी

वर्षों पहले जब मैं गुजरात के राजकोट शहर में था, तब अमिताभ कुमार की चर्चित पुस्तक हसबैंड आॉफ द फनैटिक को पढ़ने का मौका मिला था। पटना में दिलचस्पी होने के कारण उनकी दूसरी किताब चूहों की बात (ए मैटर आॉफ रैट्स) भी पढ़ा था। इसलिए कुछ दिन पहले अमित वर्मा के, द सीन ऐंडContinue reading “द ब्लू बुक: अमिताभ कुमार की डायरी”

श्याम शर्मा

छापा कला की दुनिया में श्याम शर्मा आज किसी परिचय के मुहताज नहीं हैं। पचास से भी ज्यादा वर्षों से उनकी कलाकृतियां कला और समाज को समृद्ध करती रहीं हैं। आज भी कर रहीं हैं। कला और साहित्य से जुड़े विषयों पर उनकी लगभग दर्जन भर किताबें प्रकाशित हो चुकीं हैं। वह एक कवि भीContinue reading “श्याम शर्मा”